05 Sep 2025 छत्तीसगढ़: जगदलपु छत्तीसगढ़ का गौरव और आदिवासी संस्कृति की पहचान, विश्वप्रसिद्ध बस्तर दशहरा का आगाज़ आज से हो गया है। यह पर्व किसी युद्ध विजय या रावण वध से जुड़ा नहीं है, बल्कि मां दंतेश्वरी देवी की आराधना और लोक परंपराओं का अनूठा उत्सव है।
इतिहास और महत्व
करीब 600 साल पहले बस्तर राजाओं द्वारा शुरू की गई यह परंपरा आज भी उसी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाई जाती है। यह देश का सबसे लंबा पर्व है, जो 75 दिनों तक चलता है। इस दौरान जगदलपुर में मां दंतेश्वरी देवी की विशेष पूजा होती है और आदिवासी समाज अपनी-अपनी देवी-देवताओं की झांकियों के साथ जगदलपुर पहुंचते हैं।

पर्व की प्रमुख रूपरेखा
- पाट जात्रा – पर्व की शुरुआत, देवी-देवताओं की आराधना।
- कलश स्थापना व पूजा – विभिन्न समाजों की सहभागिता।
- काछन गादी – राज परिवार की पारंपरिक रस्म।
- नवरात्रि उत्सव – मां दंतेश्वरी की विशेष पूजा।
- रत्नाकर रथ निर्माण – विशाल रथ का तैयार होना।
- रथारोहण और खींचाई – हजारों श्रद्धालु रथ खींचते हैं।
- मुरिया दरबार – आदिवासी समाज की पारंपरिक बैठक।
- समापन – दीपावली के बाद देवी की पुनः स्थापना।

सांस्कृतिक रंग
ढोल-नगाड़ों की गूंज, पारंपरिक नृत्य और आदिवासी परिधानों से पूरा बस्तर उत्सवमय हो जाता है। जगदलपुर में सैकड़ों गांवों से देवी-देवताओं की झांकियां आती हैं, जिनके साथ हजारों श्रद्धालु उमड़ पड़ते हैं। इस पर्व का सबसे बड़ा आकर्षण विशाल रत्नाकर रथ है, जिसे रस्सियों से हजारों लोग खींचते हैं।

वैश्विक पहचान
बस्तर दशहरा केवल धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति और लोक परंपराओं की जीवंत विरासत है। यही वजह है कि इसे देखने हर साल न केवल देश बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक जगदलपुर पहुंचते हैं।